सेठानी घाट पर आज नर्मदा से मिलने आया जुड़ा गई आँखें निहारते नर्मदा का निर्मल जल बह गया भीतर का कूड़ा-करकट बहुत संबल मिला नर्मदा के दरस-परस से
हिंदी समय में प्रेमशंकर शुक्ल की रचनाएँ